वित्तीय वर्ष का अंत आते-आते कई निवेशकों की चिंता भी बढ़ जाती है। इसका कारण है -टैक्स सम्बन्धी निवेश। भारत में कर नियोजन (tax planning) को एक वार्षिक अभ्यास के रूप में देखा जाता है जहां कर्मचारियों को एक विशेष तिथि से पहले टैक्स बचत से संबंधित सभी दस्तावेज़ जमा करने होते हैं।
यदि निवेशक अपने लक्ष्यों और दीर्घकालिक उद्देश्यों को ध्यान में रख कर वित्तीय वर्ष के आरम्भ से ही चुनिंदा विकल्पों में पैसा लगाना शुरू कर दें तो मार्च के महीने में टैक्स सम्बन्धी परेशानियां नहीं आएंगी।
जिन निवेशकों ने “पुरानी कर व्यवस्था” (Old tax regime) को चुना है उनके लिए आयकर अधिनियम,1961 की धारा 80 सी के अंतर्गत अनेक विकल्प उपलब्ध हैं जिनमें से वे अपनी जोखिम क्षमता, लक्ष्य की दूरी, अपेक्षित रिटर्न की दर और लिक्विडिटी की आवश्यकता के अनुसार एक या उससे अधिक विकल्प चुन सकते हैं।इससे वे एक बढ़िया ‘कर उपरांत निधि’ (post tax corpus) बना सकते हैं।
टैक्स बचत से पहले इन दोनों कर व्यवस्थाओं के विषय में जानना आवश्यक है –
वर्ष 2020 के बजट में इसकी घोषणा के पश्चात नई व्यवस्था लागू की गयी है। 15 लाख रु तक की आय वाले करदाताओं के लिए कम टैक्स दरों के साथ 6 नए स्लैब हैं।पुरानी व्यवस्था में उपलब्ध कर छूट और अन्य कटौतियां इस टैक्स व्यवस्था में नहीं हैं। यह व्यवस्था निवेशकों को सम्पूर्ण आज़ादी देती है और पहले से निर्धारित निवेश विकल्पों से हट कर ‘अपनी पसंद’ के अनुसार निवेश करने का लाभ प्रदान करती है।
इसमें कर-दाताओं को उपलब्ध कटौतियां व छूट जारी रहेगी। इस व्यवस्था में टैक्स दर नई प्रणाली से अलग है। यह उन कर-दाताओं के लिए अधिक उपयुक्त है जो पारंपरिक निवेश विकल्पों के माध्यम से बचत करते आये हैं और आगे भी जारी रखना चाहते हैं। ऐसे निवेशक उपलब्ध कटौतियों और छूट का उपयोग भली भांति समझते हैं और इन्होनें दोनों प्रणालियों का तुलनात्मक विश्लेषण करने के पश्चात निर्णय लिया है।
यह एक इक्विटी म्यूचुअल फंड है जो निवेशकों का पैसा शेयर बाज़ार अथवा सूचीबद्ध कंपनियों में निवेश करता है और साथ ही आयकर लाभ भी प्रदान करता है। ईएलएसएस एक प्रभावी विकल्प है और कई निवेशकों के लिए यह उनका पहला इक्विटी निवेश होता है।
निवेशक इसमें एकमुश्त (lump sum) या व्यवस्थित निवेश योजना (एसआईपी) के माध्यम से निवेश कर सकते हैं। वित्तीय वर्ष के आरंभ से हर महीने थोड़ा-थोड़ा निवेश लाभदायक रहता है।
ईएलएसएस निवेश की लॉक-इन अवधि मात्र 3 वर्ष है। यह धारा 80 सी के अन्य विकल्पों, जैसे पीपीएफ -15 वर्ष, टैक्स बचत वाले फिक्स्ड डिपॉजिट- 5 वर्ष और एनएससी – 5 वर्ष, सभी से कम है।
ईएलएसएस भी अन्य म्यूचुअल फंडस की तरह इसके नियामक भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड (सेबी) के दायरे में आते हैं, इसलिए निवेश पारदर्शी और निरंतर सेबी की नज़र में रहता है।
निवेशित राशि पर 3 साल की लॉक-इन अवधि होती है अर्थात तीन वर्षों तक पैसा फंड में निवेशित रहता है। तीन वर्ष के पश्चात निवेशक इसे निकाल सकते हैं किन्तु यदि आवश्यकता न हो तो इसे अधिक समय तक निवेशित रख कर धन संचय का साधन बनाया जा सकता है।
निवेशक वित्तीय वर्ष में एक या अधिक ईएलएसएस में किसी भी राशि का निवेश कर सकते हैं। किन्तु धारा 80 सी के अंतर्गत बचत हेतु 1.5 लाख रूपए ही पात्र होंगे।
यह लोकप्रिय टैक्स-बचत विकल्प है और सुरक्षित, लचीला और तीनों चरणों (निवेश, संचय और निकासी) में कर लाभ (tax-exemption) देता है। पीपीएफ की कर-मुक्त प्रणाली इसे अन्य विकल्पों, जैसे एनएससी, टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट से बेहतर बनाती है।इसकी वर्तमान ब्याज दर 7.1 % है और इसमें निवेशकों का पैसा धीरे-धीरे ब्याज सहित कंपाउंड होता है जो लंबे समय तक संयोजित रहता है।
टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट सार्वजनिक और निजी क्षेत्र के बैंकों के पास उपलब्ध होते हैं। इनमें 5 साल की लॉक इन अवधि है और इससे पहले उनसे निकासी नहीं हो सकती। हालांकि ये अपेक्षाकृत सुरक्षित हैं लेकिन परिपक्वता पर अर्जित ब्याज कर योग्य है। इनमें ब्याज दर बैंक पर निर्भर करती है – निजी बैंक सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों की तुलना में बेहतर दरों की पेशकश कर सकते हैं और वरिष्ठ नागरिकों के लिए दर अधिक होती है।
यह एक निश्चित आय, कम जोखिम वाला तथा सरकार समर्थित निवेश है।एनएससी को ऐसे निवेशकों द्वारा पसंद किया जाता है जो निश्चित आय वाले उत्पादों में निवेश करके अपने पोर्टफोलियो में विविधता लाना चाहते हैं।इसकी वर्तमान ब्याज दर 6.8 % है।एनएससी पर ब्याज दर सालाना चक्रवृद्धि (compound) होती है, लेकिन देय केवल परिपक्वता (5 वर्ष) पर होती है।
ईपीएफ सभी वेतनभोगी कर्मचारियों के लिए उपलब्ध है, जिनका मूल वेतन 15,000 रु से अधिक है। इसमें कर्मचारी के मूल वेतन का 12% + डीए (महंगाई भत्ता) नियोक्ता द्वारा काट लिया जाता है और ईपीएफ या अन्य मान्यता प्राप्त भविष्य निधि में जमा किया जाता है।ईपीएफ योगदान, संचय और निकासी- तीनों चरणों में कर मुक्त है और इसकी वर्तमान दर 8.1% है। (वित्तीय वर्ष 2021-22 से 2.5 लाख रु से अधिक के योगदान पर उत्पन्न ब्याज कर योग्य होगा)
वरिष्ठ नागरिक बचत योजना 60 वर्ष से अधिक आयु वाले निवेशकों के लिए उत्तम निवेश विकल्प है। इसकी वर्तमान दर 7.4% है । 50,000 रु तक के ब्याज की अतिरिक्त कर छूट के बाद यह और भी लाभदायक विकल्प बन गया है। इसमें हर तिमाही में ब्याज का भुगतान किया जाता है और लॉक इन अवधि 5 वर्ष की है।हालांकि, समय से पहले निकासी की अनुमति है (शर्तों के साथ) और खाते को पांच साल पूरे होने के बाद तीन साल के लिए बढ़ाया जा सकता है।वरिष्ठ नागरिक खाता डाकघर या बैंकों की नामित शाखाओं में खोला जा सकता है।
10 साल से कम आयु की बेटी वाले करदाताओं के लिए सुकन्या समृद्धि योजना टैक्स बचत करने का अच्छा विकल्प है। इस समय इसकी ब्याज़ दर 7.6% है। पीपीएफ की तरह इसमें भी अर्जित ब्याज कर मुक्त होता है और निवेश की सीमा 1.5 लाख रु वार्षिक है। खाताधारक के 21 वर्ष की आयु का होने पर खाता परिपक्व हो जाता है। बालिका के 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने या उसके दसवीं कक्षा के बाद, (जो भी पहले हो) खाते से, शर्तों के अनुसार निकासी की भी अनुमति है।
एनपीएस (NPS)
एनपीएस एक स्वैच्छिक परिभाषित अंशदान पेंशन प्रणाली है, जिसके माध्यम से उचित बचत राशि के साथ बेहतर सेवानिवृत्ति के लिए बचत की जा सकती है और एक नियमित पेंशन का लाभ उठाया जा सकता है।राष्ट्रीय पेंशन योजना (एनपीएस) पेंशन फंड नियामक और विकास प्राधिकरण (पीएफआरडीए) द्वारा संचालित भारतीय नागरिकों के लिए दीर्घकालिक निवेश योजना है। यह तीन तरह से टैक्स बचाने में सहायता करती है –
पहला-धारा 80 सी के तहत 1.5 लाख रु तक के योगदान पर कटौती है।
दूसरा -धारा 80 सीसी डी (1बी) के तहत 50,000 रु तक की अतिरिक्त कटौती है।
तीसरा-यदि नियोक्ता (employer) कर्मचारी के मूल वेतन का 10% एनपीएस में डालता है, तो वह राशि भी कर योग्य नहीं होगी।
यह भी बैंक के टैक्स सेविंग फिक्स्ड डिपॉजिट की तरह 5 साल का निवेश है। इसमें न्यूनतम 1000 रु जमा किये जा सकते हैं और कोई अधिकतम सीमा नहीं है किन्तु टैक्स लाभ केवल 1.5 लाख रु के लिए उपलब्ध है। इसमें भी अर्जित ब्याज कर योग्य है।
क्यों वित्तीय वर्ष के अंत में टैक्स सम्बन्धी निवेश से बचना चाहिए?
– एक बार में बड़ी राशि जुटाना कठिन होता है। यदि बड़ी राशि उपलब्ध है, तब भी, इसे किसी अन्य व अधिक उपयोगी उद्देश्य के लिए रखा जा सकता है
– केवल टैक्स बचाने के लिए किया गया निवेश निवेशक के सर्वोत्तम हित में नहीं होता
– जल्दबाज़ी और अंतिम समय में किया गया निवेश उस वित्त वर्ष के लिए ही किया जाता है और अगले वर्ष के लिए कुछ नया, असंबंधित निवेश किया जाता है। यह निश्चित रूप से निवेशकों के दीर्घकालिक वित्तीय हित में नहीं है।
टैक्स प्लानिंग और धन सृजन
टैक्स निवेशकों के वित्तीय जीवन का एक महत्वपूर्ण तथ्य है। हर साल टैक्स से बचने का उपाय सोचने से बेहतर है कि निवेशक कर नियोजन को प्राथमिकता देकर अपने पोर्टफोलियो का मुख्य हिस्सा बनाएं।
धारा 80 सी में उपलब्ध विभिन्न निवेश विकल्प अधिकतम लाभ और धन सृजन के लिए उपयुक्त हैं – आवश्यकता इस बात की है कि इनके चुनाव में निर्णय सोच समझ कर लिया जाए।
करुणेश देव बैंकिंग प्रोफेशनल रह चुके हैं और इन्हें इंशोरेंस कंपनी और विदेशी बैंकों के विभिन्न विभागों में काम करने का अनुभव है। वित्तीय सलाहकार होने के साथ पर्सनल फाइनेंस और वित्तीय साक्षरता में लेखन और शिक्षण के क्षेत्र में कार्यरत हैं।अधिक से अधिक लोग ‘बेहतर और समझदार’ निवेशक बनें, यह इनका ध्येय है।
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