आईपीओ क्या होता है व निवेश करते समय ध्यान में रखने वाली बातें

शेयर बाज़ारों के सन्दर्भ में ‘आईपीओ’ या ‘प्रारंभिक सार्वजनिक प्रस्ताव’ (Initial Public Offering) सबसे अधिक प्रयोग होने वाले शब्दों में से एक है। पिछले दो वर्षों में भारतीय परिदृश्य में लगभग हर निवेशक ने इसके विषय में अवश्य पढ़ा, सुना या इसमें निवेश किया होगा। 

आईपीओ क्या है ?

आईपीओ के द्वारा ‘निजी’ स्वामित्व (ownership) वाली कंपनी अपने हिस्से अथवा शेयरों को आम जनता को बेचकर व अपने स्वामित्व को घटा कर ‘सार्वजनिक’ बन सकती है। यह बिलकुल नई, नव – निर्मित अथवा पुरानी कारोबारी संस्था हो सकती है जो अब तक निजी कंपनी के रूप में काम कर रही थी।

आम तौर पर, जब कोई कंपनी निजी प्रबंधन के रूप में स्थापित होती है, तो उसके शेयर या उसके हिस्से मुख्य रूप से उसके मालिकों, परिवार के करीबी सदस्यों, दोस्तों, बड़े निवेशकों, निजी संस्थाओं या फाइनेंसर्स के पास होते हैं।

आईपीओ के माध्यम से इन शेयरों को आम निवेशकों को खरीदने या हिस्सेदारी लेने का विकल्प दिया जाता है। 

आईपीओ के लिए आवश्यक है :

– डीमैट खाता

– ट्रेडिंग खाता

– बैंक खाता

आईपीओ एप्लीकेशन कैसे करें

ऑफ़लाइन

इसमें निवेशक को सारी आवश्यक जानकारी के साथ फॉर्म भरना होता है। इसके साथ आवश्यक राशि का चेक ब्रोकर या बैंक में जमा करना होता है। ऑफलाइन प्रक्रिया में 2 – 3 दिन का समय लग सकता है।

ऑनलाइन

यह एक आसान तरीका है जिससे निवेशक अपने ट्रेडिंग खाते में लॉग – इन करके शेयरों की संख्या का चयन कर सकते हैं। उसके हिसाब से आवश्यक राशि उनके अकाउंट में ब्लॉक हो जाती है। यदि निवेशक को शेयर आवंटित किए जाते हैं तभी उतनी राशि उनके खाते से डेबिट होती है।

आईपीओ में निवेश से पहले निवेशकों को इन बातों का ध्यान रखना चाहिए –

1 कंपनी का मूल्यांकन (Valuation)

आम निवेशकों के लिए कंपनी का मूल्यांकन करना आसान नहीं है, इसलिए  उन्हें अधिक से अधिक जानकारी जुटाने का प्रयास करना चाहिए। निवेशक प्रॉस्पेक्टस और सार्वजनिक रूप से उपलब्ध अन्य जानकारी कंपनी की वेबसाइट, कॉर्पोरेट फाइलिंग (corporate filings) आदि से जुटाकर उसका आकलन कर सकते हैं। निवेशकों को इन माध्यमों से ये भी जानने का प्रयास करना चाहिए कि अपने कार्य – क्षेत्र में कंपनी की स्थिति कैसी है, उसकी रणनीति क्या है और भविष्य में व्यापार की क्या संभावनाएं हैं। वे उसी क्षेत्र में समान व्यापार (similar businesses) वाली कंपनियों के विषय में भी जानकारी जुटा सकते हैं।

2 आवश्यक प्रकटीकरण (Disclosure) 

आईपीओ लाने वाली कंपनी को अपने व्यवसाय, प्रमोटर्स, वित्तीय जानकारी, पूंजी उपयोग व वित्तीय स्थिति, प्रबंधन टीम, भविष्य के लक्ष्य व उद्देश्य आदि के विषय में सभी महत्वपूर्ण जानकारी का अनिवार्य रूप से अपने प्रॉस्पेक्टस में खुलासा करना होता है। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज़ है और इसे ध्यान और बारीकी से पढ़ा जाना चाहिए।

3 व्यापार के लिए जोखिम

निवेशकों को कंपनी के प्रॉस्पेक्टस को पढ़कर उसके व्यवसाय के लिए वर्तमान और भविष्य के जोखिमों का आकलन करने का प्रयास करना चाहिए। कंपनी के व्यवसाय से जुड़े प्रमुख जोखिमों का पता लगाना उसमें निवेश से पहले अत्यंत आवश्यक है – किसी भी पुराने सौदे, उधार, बकाया देनदारियां या मुकदमे को बारीकी से देखा जाना चाहिए क्योंकि इस प्रकार के जोखिम कंपनी के भविष्य के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं।

4 धन का उपयोग 

यह जांचना आवश्यक है कि आईपीओ से जुटाई गई राशि का प्रयोग कैसे किया जाएगा। यदि कंपनी आईपीओ फंड का उपयोग केवल अपने ऋण का भुगतान करने या कम करने के लिए करेगी, तो यह निवेशकों के लिए आकर्षक या लाभदायक विकल्प नहीं हो सकता है। लेकिन कंपनी अगर अपने ऋण के भुगतान के लिए धन जुटा रही है और बाकी पूंजी निवेश या व्यापार के विस्तार के लिए, तो यह निवेशकों के लिए लाभदायक होगा।

5 व्यापार का भविष्य / संभावनाएं

निवेशकों को कंपनी के व्यापार – क्षेत्र में उसके भविष्य को समझने के लिए व्यवसाय की क्षमता का विश्लेषण करना चाहिए। जिन निवेशकों ने कंपनी के व्यापार में निवेश किया है, उन्हें लाभ तभी होगा जब कंपनी आईपीओ के बाद लगातार अच्छा प्रदर्शन करेगी। उसका व्यवसाय लम्बी अवधि के अनुमान से टिकाऊ व सुदृढ़ होना चाहिए और निवेशकों को लाभान्वित होने के लिए व्यापार में अच्छे भविष्य की संभावनाएं होनी चाहिए।

6 निवेश की समय – सीमा

निवेशकों को अपने निवेशित रहने की समय – सीमा के विषय में स्पष्टता होनी चाहिए। यदि उनका उद्देश्य लिस्टिंग के दिन तुरंत लाभ कमाना है, तो उन्हें इस रणनीति पर बने रहना चाहिए। यदि उनकी योजना लंबी अवधि के लिए शेयरों को रख कर लाभ कमाने की है, तो निवेश के मूल सिद्धांतों, जैसे – कंपनी के व्यापार का प्रदर्शन, उसके उत्पादों के लिए उपयुक्त बाज़ार, लाभप्रदता, प्रतिस्पर्धी कंपनियों का आकलन आदि लाभदायक रहेगा।

आईपीओ – प्रमुख शब्दावली

आईपीओ से जुड़ी कुछ प्रमुख शब्दावली को समझते हैं –

आईपीओ लाने वाली कम्पनी को क्या कहा जाता है और ये किस बाज़ार में आता है?

जो कंपनी अपने शेयर प्रदान करती है, उसे ‘जारीकर्ता’ (issuer) के रूप में जाना जाता है और आईपीओ प्राथमिक बाज़ार (Primary market) में लाया जाता है।

आईपीओ के बाद कंपनी के शेयरों को स्टॉक एक्सचेंज में सूचीबद्ध (list) किया जाता है और आम निवेशकों द्वारा इनमें कारोबार किया जा सकता है।

सूचीबद्ध होने के पश्चात इन शेयरों का द्वितीयक बाज़ार (Secondary market) में लेन – देन किया जा सकता है।

प्राथमिक बाज़ार और द्वितीयक बाज़ार (Primary market & Secondary market)

क्या हैं?

प्राथमिक बाज़ार

आईपीओ के माध्यम से पहली बार जिस बाज़ार में आम जनता को नए शेयर खरीदने की पेशकश की जाती है, वह ‘प्राथमिक बाज़ार’ है। इसे ‘आईपीओ बाज़ार’ के रूप में भी जाना जाता है।

विशेषताएं :

-प्राथमिक बाज़ार कंपनी की पूंजी आवश्यकताओं को पूरा करता है

-इसमें शेयर्स की कीमत जारी करने से पहले तय होती हैं 

-निवेशक सीधे जारीकर्ता से शेयर खरीदते हैं

-कंपनी (या जारीकर्ता) को शेयर्स की बिक्री से लाभ होता है

-प्राथमिक बाज़ार में आईपीओ से प्राप्त राशि कंपनी की पूंजी बन जाती है

द्वितीयक बाज़ार

जब कंपनी किसी एक्सचेंज में सूचीबद्ध हो जाती है और उसके शेयरों का निवेशकों के बीच कारोबार होता है, तो इस बाज़ार को द्वितीयक बाज़ार कहा जाता है। 

बीएसई और एनएसई जैसे स्टॉक एक्सचेंज जहां शेयरों का कारोबार होता है ‘द्वितीयक बाज़ार’ हैं।

विशेषताएं :

-लिस्टिंग के बाद ट्रेडिंग द्वितीयक बाज़ार में ही होती है

-द्वितीयक बाज़ार में शेयर्स की कीमतें बदलती रहती हैं 

-द्वितीयक बाज़ार में निवेशक आपस में शेयर्स खरीदते और बेचते हैं

-इस बाज़ार में पूंजी निवेशकों की होती है 

आईपीओ लाने की क्या प्रक्रिया है?

सर्वप्रथम शेयर बाज़ार के नियामक सेबी (SEBI) के साथ रजिस्ट्रेशन करवाना अनिवार्य होता है।आईपीओ लाने से पहले कंपनी को कुछ महत्वपूर्ण कार्य पूरे करने होते हैं, जैसे  –

-निवेश बैंक (Investment Bank) का चयन 

-प्रॉस्पेक्टस बनाना

-सेबी अप्रूवल

-स्टॉक एक्सचेंज की मंजूरी

आईपीओ – जागरूक निवेश 

आधुनिक वित्त-व्यवस्था में व्यापार को बढ़ाने और उसके विस्तारीकरण का सबसे सरल तरीका है – पूंजी का आसानी से और समय पर उपलब्ध होना।

आईपीओ प्रमुख माध्यम है जिससे कंपनी अपने विकास और भविष्य की संभावनाओं में सार्वजनिक भागीदारी के साथ – साथ आवश्यक धन भी जुटा सकती है।

अपनी पसंद के व्यापार में शेयरधारक बनने के इच्छुक निवेशक ऐसे व्यापार को पूंजी प्रदान कर सकते हैं।

किन्तु निवेशकों को अपनी जोखिम क्षमता के आधार पर ही निर्णय लेना चाहिए – जागरूक और सतर्क निवेशकों की बाज़ारों में सफलता की संभावना निश्चित रूप से अधिक होती है।

Karunesh Dev

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