आपने देखा होगा कि अक्सर लोग कहते हैं कि बहुत साल पहले चीज़ें सस्ती थीं या आज की तुलना में खाना-पीना कम पैसे में हो जाता था – समय के साथ वस्तुओं या सेवाओं की कीमतों में औसत परिवर्तन अर्थव्यवस्था में ‘इन्फ्लेशन’ को दर्शाता है। इसी को थोड़ा विस्तार से जानते हैं और उसके प्रभाव व बचाव की रणनीति भी समझते हैं।
इन्फ्लेशन भोजन, कपड़े, आवास, मनोरंजन, ट्रांसपोर्ट, खाने-पीने की चीज़ें और उपभोक्ता वस्तु आदि जैसे रोज़मर्रा के उत्पादों और सेवाओं की कीमतों में वृद्धि को दर्शाती है। इन वस्तुओं और सेवाओं की कीमतों में बदलाव को हर महीने मापा जाता है और इस वृद्धि – दर को महंगाई या ‘इन्फ्लेशन – दर’ के रूप में दर्शाया जाता है।
एक उदाहरण लेते हैं – 6 महीने पहले आपने 500 रु में 25 किलो चावल खरीदे थे (मतलब 1 किलो चावल = 20 रु)
इस महीने जब आप उसी दुकानदार के पास चावल खरीदने गए तो उसने कहा कि अब 500 रु में 20 किलो चावल मिलेंगे क्योंकि चावल की कीमत बढ़ गई है और अब कीमत 25 रु प्रति किलो है।
यहां दो बातें हुई हैं –
1) चावल की कीमत बढ़ गयी है
2) आपको उतने ही पैसे में कम सामान मिल रहा है
यही “इन्फ्लेशन” या ‘महंगाई’ है।
इन्फ्लेशन आपके खर्चों, कंपनियों के निवेश और रोजगार दरों के साथ – साथ सरकारी कार्यक्रमों, टैक्स नीतियों और ब्याज दरों सहित अर्थव्यवस्था के हर हिस्से को प्रभावित करती है।
इन्फ्लेशन निवेश के रिटर्न को कम कर सकती है, इसलिए निवेशकों की इस पर दृढ़ पकड़ होनी चाहिए।
अर्थव्यवस्था में इन्फ्लेशन के कुछ प्रमुख कारण हैं – मांग और आपूर्ति के बीच असंतुलन, आर्थिक या विश्व परिस्तिथियां, उत्पादन में परिवर्तन, डिस्ट्रीब्यूशन लागत में परिवर्तन या वस्तुओं या उत्पादों पर टैक्स में वृद्धि।
इन्फ्लेशन का मध्यम स्तर किसी भी अर्थव्यवस्था के लिए अच्छा है। 3% या 4% की इन्फ्लेशन दर उचित समझी जाती है – लोग अधिक सामान खरीदते हैं और बैंकों से ज़्यादा उधार लेते हैं, क्योंकि कम इन्फ्लेशन के समय में ब्याज दर का स्तर भी कम रहता है।
महंगाई को काबू में रखना सरकार के भी हित में है, इसलिए सरकार और केंद्रीय बैंक हमेशा सीमित स्तर की इन्फ्लेशन बनाये रखने का प्रयास करते हैं।
भारत में इन्फ्लेशन दर को मापने के दो प्रमुख तरीके हैं: कंस्यूमर प्राइस इंडेक्स और होलसेल प्राइस इंडेक्स
यह रिटेल स्तर पर महंगाई मापने का इंडेक्स है।आम उपभोक्ता सीधे छोटे दुकानदारों से सामान खरीदते हैं। इसलिए इन दुकानों से जांची गई इन्फ्लेशन राष्ट्रीय मूल्य बढ़ोतरी का अच्छा माप माना जाता है। यह नागरिकों की कॉस्ट ऑफ़ लिविंग लागत को भी प्रदर्शित करता है।
यह होलसेल (या थोक) स्तर की इन्फ्लेशन दर मापने का तरीका है। इन्फ्लेशन की इस दर को अक्सर ‘हेडलाइन इन्फ्लेशन’ भी कहा जाता है।
बढ़ती इन्फ्लेशन अर्थव्यवस्था के हर हिस्से को किसी न किसी रूप में प्रभावित करती है :
1. बढ़ती महंगाई अनिश्चितता लाती है कि आगे क्या होगा – लोग भविष्य को ध्यान में रख कर कम सामान खरीदते हैं, खरीदारी की योजना आगे बढ़ाते रहते हैं और कंपनियां भी कम मात्रा में उत्पाद और सेवाएं खरीदती हैं।
इस प्रकार बढ़ती इन्फ्लेशन डिमांड और आर्थिक उत्पादन पर असर डालती है।
2. पेंशनभोगी और वरिष्ठ नागरिक जो एक निश्चित राशि या पेंशन पर अपना खर्च चलाते हैं, महंगाई में तेज़ वृद्धि के कारण प्रभावित हो सकते हैं। उनके जीवन स्तर पर असर हो सकता है और उनकी क्रय-शक्ति भी कम हो जाती है।
3. महंगाई के साथ, उत्पादों, वस्तुओं और सेवाओं की कीमत में बदलाव होता है – बाहर खाना, घूमना, होटल बुकिंग, कपड़े, घर बनाने वाले उत्पाद, मॉल्स और सुपर-मार्केट, सब जगह कीमतों में बदलाव के कारण आम आदमी प्रभावित होता है और इसके चलते डिमांड प्रभावित होती है।
4. अर्थव्यवस्था की बात करें तो दुनिया के अन्य देशों की तुलना में अगर एक विशेष देश में इन्फ्लेशन की दर में तेज़ी से वृद्धि हो रही है, तो यह विदेशी निवेश को आकर्षित करने के मामले में नुकसानदायक हो सकता है।
5. बढ़ती महंगाई में कंपनियों को उत्पादन या गुणवत्ता में बिना किसी सुधार के, अपने कर्मचारियों को ज़्यादा वेतन देना पड़ सकता है, जो उनके खर्चों को बढ़ाता है और लाभ को घटाता है।
इन्फ्लेशन से केंद्रीय बैंक या संस्थाएं, सरकारी या निजी कंपनियां, उत्पादक भी उसी प्रकार प्रभावित होते हैं जैसे कि आम ग्राहक।
आम नागरिकों के हिसाब से कुछ प्रमुख विकल्पों पर इसका असर समझते हैं :
निवेशकों के लिए “वास्तविक रिटर्न” को समझना आवश्यक है – आपके निवेश के रिटर्न में से इन्फ्लेशन की दर घटाकर मिला रिटर्न ‘वास्तविक रिटर्न’ है।
आपका बैंक बचत खाता प्रति वर्ष 2% – 4% का रिटर्न देता है, जबकि इसका वास्तविक रिटर्न नेगेटिव है क्योंकि पिछले बारह महीनों में इन्फ्लेशन की औसत दर 6% थी – बैंक की दर से कहीं अधिक।
फिक्स्ड आय वाले निवेश इन्फ्लेशन से ज़्यादा प्रभावित होते हैं। इन्फ्लेशन बढ़ने से इनकी दरें नहीं बढ़ती क्योंकि ये पहले से फिक्स्ड होती हैं। कई निवेशक मौजूदा, कम-रिटर्न वाले फिक्स्ड निवेश बेचकर नया निवेश करने का प्रयास करते हैं, जिससे और नुक्सान हो सकता है।
यहां इन्फ्लेशन सकारात्मक या नकारात्मक (positive or negative) हो सकती है, जो आपके निवेशित धन, व्यापार के वातावरण, निवेशित सेक्टर, कंपनी की बैलेंस शीट और उसकी मूल्य निर्धारण शक्ति के आधार पर हो सकती है। 2% से 6% के बीच इन्फ्लेशन आम तौर पर इक्विटी के लिए अच्छी मानी जाती है, जबकि 10% से अधिक दर हानिकारक है।
सोने को महंगाई से बचाव के लिए अच्छा समझा जाता है, क्योंकि यह बढ़ती इन्फ्लेशन के दौरान आपके पोर्टफोलियो की रक्षा करता है। हालांकि, अगर केंद्रीय बैंक इन्फ्लेशन के चलते ब्याज दरों में वृद्धि करते हैं, तो सोना कुछ निवेशकों के लिए अधिक आकर्षक नहीं रहता।
इन्फ्लेशन से घबराकर जल्दबाज़ी में निर्णय लेना गलत है। इससे लड़ने की सबसे अच्छी रणनीति है – अच्छे वित्तीय विकल्पों में निवेश। आपके निवेशों से भविष्य में रिटर्न की दर इन्फ्लेशन की दर के बराबर या उससे अधिक होनी चाहिए।
कुछ प्रमुख निवेश और आपकी निवेश रणनीति :
स्टॉक्स ने लंबी अवधि में महंगाई की दर से अधिक रिटर्न दिया है।
क्या करें – अच्छे ब्लू चिप स्टॉक्स में बने रहें
आम निवेशकों के लिए इक्विटी म्यूचुअल फंड एक बेहतर विकल्प हैं। इनमें जोखिम है किन्तु उच्च रिटर्न की क्षमता भी अधिक है।
क्या करें – लम्बी अवधि के निवेशक बने रहें।
इनमें रिटर्न की एक निश्चित दर का भुगतान किया जाता है।
क्या करें – मूल निवेश की सुरक्षा के हिसाब से वरिष्ठ नागरिक और सेवानिवृत्त लोगों के लिए आकर्षक विकल्प हैं।
इनमें इक्विटी और डेट दोनों का मिश्रण रहता है।
क्या करें – अलग-अलग फंड में निवेश न करने वाले निवेशक इन्हें चुन सकते हैं।
सोना इन्फ्लेशन के दौरान अच्छा माना जाता है।
क्या करें – भौतिक सोने (Physical Gold) की तुलना में गोल्ड ईटीएफ (Exchange Traded Fund), गोल्ड म्यूचुअल फंड (Gold Mutual Fund) या सॉवरेन गोल्ड बॉन्ड (Sovereign Gold Bonds) बेहतर विकल्प हैं।
इन्फ्लेशन से लड़ने के लिए सर्वोत्तम निवेश-उत्पादों का चयन करते समय, निवेशकों को अपने लक्ष्यों व जोखिम क्षमता का ध्यान रखना चाहिए। निवेशकों का प्राथमिक उद्देश्य अपने मूल-धन की रक्षा के साथ महंगाई की दर से बेहतर या उसके आस – पास रिटर्न होना चाहिए।
एक निवेशक के रूप में आप पैसा बचाना शुरू करते हैं और उसे अच्छे निवेशों में लगाते हैं जो कम्पाउंडिंग और समय के साथ आपके पोर्टफोलियो को बनाने और बढ़ाने में मदद करते हैं। किन्तु इस पूंजी को बचाये रखने के लिए आपको जागरूक रहना होगा – इन्फ्लेशन का अपने पोर्टफोलियो पर असर और निवेश के माहौल में बदलाव को अच्छी तरह समझना होगा। यह आपके वित्तीय जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा है और इसके प्रभाव को समझना ज़रूरी है।
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