शेयर बाज़ार में पैसा बनाने के लक्ष्य के साथ निवेशक इससे जुड़े जोखिम और उतार-चढ़ाव के बारे में भी जानते हैं। बाज़ार की अस्थिरता से बचाव का एक सशक्त माध्यम है – विविधीकरण (diversification)। अलग तरह के निवेश विकल्पों का चयन, विभिन्न कंपनियों के शेयरों, अलग सेक्टर्स की कंपनियों में निवेश के साथ – साथ अंतर्राष्ट्रीय बाज़ारों में निवेश के माध्यम से भी विविधीकरण प्राप्त किया जा सकता है।
भविष्य की अनिश्चितता एक प्रमुख कारण है जिसके चलते विशेषज्ञ यह सलाह देते हैं कि अपना सारा धन किसी एक निवेश में न लगाएं – इसी को आगे बढ़ाते हुए अब नया तथ्य उभरा है कि सारी पूंजी किसी एक देश में लगाना समझदारी नहीं है।
विदेशी स्टॉक्स में निवेश करने के कुछ माध्यम यहाँ दिए गए हैं:
विदेशी बाज़ारों में सीधा निवेश करना, जो कुछ साल पहले तक रिटेल निवेशक के लिए संभव नहीं था, अब एक वास्तविकता है। भारत में बैठे – बैठे विदेशी स्टॉक्स में आसानी से पैसा लगाया जा सकता है। आईये समझते हैं कैसे –
कई भारतीय ब्रोकर्स ने विदेशी निवेश के संबंध में अंतर्राष्ट्रीय ब्रोकर्स के साथ गठजोड़ किया है। अपने मौजूदा ब्रोकर से जांच लें कि क्या वे ऐसी सेवाएं प्रदान करते हैं। अंतर्राष्ट्रीय निवेश खाता भारतीय ट्रेडिंग खाते की तरह ही खुलता है।
किन्तु निवेश से पहले सारी जानकारी लेना आवश्यक है, जैसे – किस विकल्प में और कितना निवेश किया जा सकता है, क्या शर्तें व शुल्क हैं, आदि।
आप विदेशी ट्रेडिंग खाता खुलवा कर सीधा विदेशी बाज़ारों में लिस्टेड शेयर खरीद या बेच सकते हैं। सभी डाक्यूमेंट्स पूरे होने पर विदेशी ब्रोकर द्वारा खाता आम तौर पर दो – तीन दिनों में खोला जाता है। खाते में फंड्स आने के बाद निवेशक ट्रेडिंग/निवेश शुरू कर सकते हैं। कुछ अंतर्राष्ट्रीय ब्रोकिंग फर्म भारतीयों को खाता खोलने और निवेश निर्णय लेने में मदद करने के साथ रिसर्च की सुविधा भी प्रदान करती हैं।
यह विदेशी स्टॉक्स में निवेश का सरल साधन है। ऐसे निवेशक जो सीधे स्टॉक्स में निवेश से बचना चाहते हैं, म्यूचुअल फंड या एक्सचेंज ट्रेडेड फंड (ईटीएफ) के माध्यम से निवेश कर सकते हैं। इस विकल्प से वे “चुनने की परेशानी” से बच सकते हैं।
इसमें तीन विकल्प उपलब्ध हैं –
अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी फंड ऐसे फंड हैं जो भारत के बाहर लिस्टिड कंपनियों के शेयरों में निवेश करते हैं। इन्हें विदेशी फंड भी कहा जाता है। इनमें निवेश करना अधिक जोखिम वाला हो सकता है, लेकिन उच्च रिटर्न की संभावना भी है।
ये फंड हमें भारत में रहकर ऐसी कंपनियों में पैसा लगाने का अवसर प्रदान करते हैं जिनके उत्पाद तो हम उपयोग करते हैं किन्तु उन कंपनियों की ग्रोथ में भाग नहीं ले पाते।
उदाहरण के लिए अमेज़ॅन, ऐप्पल, मर्सिडीज, टोयोटा, प्रॉक्टर और गैंबल (P & G), माइक्रोसॉफ्ट आदि।
इनमें निवेश भारतीय म्युचुअल फंड्स में निवेश के समान है और डीमैट या ट्रेडिंग खाते की आवश्यकता नहीं है। ये ‘फंड ऑफ फंड्स’ (एफओएफ) या घरेलू वैश्विक फंड हो सकते हैं, जो मल्टीकैप फंड के समान होते हैं और विदेशी कंपनियों में अपने कॉर्पस के बड़े हिस्से का निवेश करते हैं।
विदेशी बाज़ारों के एक्सचेंज ट्रेडेड फंड में निवेश करने के लिए निवेशकों के पास उत्पादों की एक विस्तृत रेंज है – इन ईटीएफ में निवेश करने के लिए ट्रेडिंग खाता आवश्यक है।
फिसडम जैसे ऍप्स के माध्यम से विदेशी म्यूचुअल फंड्स में आसानी से ऑनलाइन निवेश किया जा सकता है। ऐसे ऍप्स के माध्यम से निवेश सुगम है, तेज़ है और बिना रुकावट के घर बैठे – बैठे किया जा सकता है।
देखते हैं की विदेशी स्टॉक्स में निवेश करने के क्या क्या लाभ होते हैं
यह इक्विटी निवेश का मूल सिद्धांत है। कोई भी देश या अर्थ व्यवस्था लगातार विकासशील नहीं रहती। विश्व स्तर पर अधिकांश देशों का अपना आर्थिक चक्र होता है। इसलिए दुनिया भर के विभिन्न देशों या उत्पादों में निवेश करके आप अपने पोर्टफोलियो में भौगोलिक विविधीकरण ला सकते हैं।
अंतर्राष्ट्रीय निवेश सुनने में अच्छा एवं देखने में लाभप्रद लगता है किन्तु हो सकता है कि आपको उस देश की अर्थव्यवस्था और उसके उद्योग जगत की पर्याप्त जानकारी न हो। इसलिए शुरुआत में एक अच्छा मध्यस्थ सहायक सिद्ध हो सकता है – अंतर्राष्ट्रीय इक्विटी म्युचुअल फंड, जो उस क्षेत्र के विशेषज्ञों द्वारा संचालित होता है, के माध्यम से आप वैश्विक बाजार में निवेश कर सकते हैं।
हर देश की अपनी विकास दर है और रास्ता भी – भारत प्रगतिशील देश है जो आने वाले सालों तक तेज़ी से आगे बढ़ने की क्षमता रखता है, किन्तु विकसित देशों की तुलना में हम अभी पीछे हैं। बाहर की नई और तकनीकी कारोबार वाली कंपनियां हमारे यहां की नामी पुरानी कंपनियों से भी कई गुना बड़ी हैं। विदेशी बाज़ारों में निवेश से निवेशक को विकसित और विकासशील, हर प्रकार की अर्थव्यवस्था का एक्सपोज़र मिलता है।
एक सुदृढ़ निवेश पोर्टफोलियो सही जोख़िम आबंटन में सहायक सिद्ध होता है। जब भारतीय बाज़ार नीचे जा रहे होते हैं तो यह आवश्यक नहीं है कि अमरीका, जापान या जर्मनी के बाज़ार भी नीचे जा रहे होंगे। इस तरह एक देश के घटते बाज़ार की भरपाई दूसरे देश के बढ़ते बाज़ार से की जा सकती है।
विदेशी शेयर बाज़ार कुशलता से प्रबंधित और दुनिया में सबसे विनियमित बाज़ारों में हैं। इन्होनें पारदर्शिता और रिपोर्टिंग के उच्च स्तर स्थापित किये हैं – शेयर बाज़ारों के लिए और निवेशकों की सुरक्षा और विश्वास के लिए यह ज़रूरी है – नए ज़माने की कई सफल कंपनियां अमेरिकी या अन्य विकसित बाज़ारों में सूचीबद्ध होना पसंद करती हैं ।
विदेशी शेयर्स में निवेश करते वक़्त निवेशकों को इन चीज़ो का ध्यान रखना चाहिए
यह ध्यान में रखना आवश्यक है कि विदेशी शेयर बाज़ारों में प्रत्यक्ष निवेश खाता शुरू करते समय, उसमें फंड ट्रांसफर करते समय, पैसा एक्सचेंज करते समय, शुल्क लगेगा।
इसके बाद खाते के रखरखाव और लेनदेन से संबंधित शुल्क भी होंगे (ब्रोकर या प्लेटफार्म द्वारा निर्धारित)। ये निवेश पर आधारित या एक निश्चित डॉलर प्रतिशत हो सकता है। इन शुल्कों के अतिरिक्त बैंक खाते से संबंधित लागत भी हो सकती है।
बार – बार ट्रेडिंग करने पर भी लागत होती है – भारतीय निवेशकों के लिए डॉलर की तुलना में रुपये की चाल को ध्यान में रखना समझदारी है क्योंकि यह निवेश की कुल लागत को बढ़ा या घटा सकता है। खाते में न्यूनतम राशि बनाए रखना भी लागत में वृद्धि कर सकता है। इसमें एडवाइजरी फीस के अलावा एक निश्चित वार्षिक सब्सक्रिप्शन और मेंटेनेंस चार्ज हो सकता है।
भारत का कई देशों के साथ दोहरा कर बचाव समझौता (DTAA) है, जिसका अर्थ है कि एक ही आय पर दो बार टैक्स नहीं लगाया जा सकता है।
जिस अवधि के लिए निवेश किया गया है, वह विदेशी स्टॉक्स में निवेश के मामले में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। विदेशी निवेश से होने वाली आय या रिटर्न को लॉन्ग टर्म कैपिटल गेन्स (LTCG) या शॉर्ट टर्म कैपिटल गेन्स (STCG) के रूप में वर्गीकृत किया जाता है और उसी के अनुसार टैक्स लगता है।
(LTCG -36 महीने या उस से अधिक निवेश अवधि
STCG – 36 महीने से कम निवेश अवधि)
इसी तरह निवेशकों द्वारा स्टॉक निवेश के लिए प्राप्त लाभांश (dividend) पर भी कर लगाया जाता है जो आमतौर पर लाभांश वितरित करने से पहले काट लिया जाता है। हालांकि, डीटीएए के कारण इस आय का उपयोग भारत में देय आयकर को ‘ऑफसेट’ करने के लिए किया जा सकता है। (वहां काटा गया टैक्स भारत में ‘विदेशी टैक्स क्रेडिट’ के रूप में निवेशक के लिए उपलब्ध हो जाता है)
विदेशी शेयरों में निवेश करते समय, दो देशों की करेंसी के बीच उतार-चढ़ाव को ध्यान में रखना अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि भारतीय निवेशक के लिए असल लाभ (या हानि) करेंसी कन्वर्शन के बाद ही होगी। भारतीय निवेशक के लिए यह ध्यान में रखना महत्वपूर्ण है कि एक्सचेंज रेट अस्थिर हो सकता है और यह आर्थिक, राजनीतिक कारणों के साथ – साथ मांग और आपूर्ति से भी प्रभावित होती है।
भारतीय रिजर्व बैंक की लिबरलासड रेमिटेंस स्कीम (Liberalised Remittance Scheme-LRS) के तहत भारत से विदेशी शेयरों में निवेश करते समय प्रति निवेशक प्रति वर्ष अधिकतम 2,50,000 डॉलर की अनुमति है। इस सीमा में वर्ष के दौरान शिक्षा, यात्रा, खरीदारी या अन्य विदेशी लेनदेन के लिए भारत के बाहर भेजी गई कोई भी राशि शामिल है। 2,50,000 डॉलर से अधिक राशि के लिए आरबीआई की अनुमति की आवश्यकता होगी।
तकनीक ने दुनिया को जोड़ दिया है, किन्तु वैश्विक घटनाएं विभिन्न आर्थिक क्षेत्रों को अलग तरह से प्रभावित करती हैं। इसलिए अंतरराष्ट्रीय घटनाओं पर नज़र रखना हर समय समझदारी नहीं होती है।
बदलते समय के साथ, पोर्टफोलियो को विकसित और जरूरत पड़ने पर बदलने की जरूरत है। भारतीय बाज़ार अंतरराष्ट्रीय बाज़ारों की तुलना में अभी छोटा है,इसलिए विदेशी बाज़ार धन-सृजन का अच्छा अवसर प्रदान करते हैं।
(जीडीपी के संदर्भ में ही, अमेरिका भारत से 10 गुना बड़ा है)
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